संस्कारवान

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    ==बच्चों में संस्कार की कमी के मुख्य दोषी ==

                     घर ही वह पहला विद्यालय है जहां बच्चा अपने जीवन के सभी मूल्यों को सीखता है और उसे व्यवहार में परिणित करता है । माता पिता ही प्रथम गुरु होते हैं। जो उन्हें उचित मार्गदर्शन देते हैं तथा उचित संस्कार देकर एक अच्छा व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। 
                  बच्चों में संस्कार घर से ही आता है,क्योंकि बच्चा  घर पर ही अपना ठोस समय व्यतित करता है। जो कुछ भी देखता, सुनता व महसूस करता है, उन्ही को अपने व्यवहार में प्रकट करता है। 
                  इसके साथ साथ परिवार में बुजुर्गों का भी मार्गदर्शन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, जो बच्चों को विभिन्न नैतिक मूल्य सिखाने के लिए पर्याप्त होते है। एकल परिवार में बच्चों का उचित दिशा में विकास कर पाना संभव नहीं है, क्योंकि अधिकांश माता-पिता स्वयं आपस में सामंजस्य बिठा नहीं पाते हैं। जिससे वे स्वयं की समस्याओं पर ही उलझ कर रह जाते हैं, फ़लस्वरूप बच्चों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पाता।
                हम जानते हैं कि शिक्षा हमें एक बेहतर जीवन प्रदान करती है और हमें एक अच्छा नागरिक भी बनाती है परंतु उसका उद्देश्य तब तक पूर्ण नहीं होता है जब तक वह नैतिक मूल्यों का विकास न कर दे, इसलिए शिक्षकों को  भी इस बाद का ध्यान रखना चाहिए , क्योंकि विद्यालय को दूसरा घर भी कहते हैं ।   
                  इन सब के बावजूद संगती बच्चों के जीवन का वह दूसरा सबसे बड़ा भाग है जो बच्चों को पूरी तरह से बदलने की क्षमता रखता है। संगती का उदाहरण हम बहुत से पौराणिक ग्रन्थो में देख सकते हैं, "प्रह्लाद" जैसे भी बालक रहे जो राक्षस कुल के होते हुए भी संस्कारवान थे। अत: घर का वातावरण हो, चाहे बाह्य वातावरण अगर संगत अच्छा हो तो निश्चित ही बच्चों मे संस्कार स्वत: ही आ जाते हैं । अगर संगत खराब हो तो संस्कार का नष्ट होना तय है।                     
           क्या खूब लिखा है किसी ने-
  "संगत का जरा ध्यान रखना साहब,संगत आपकी खराब होगी और बदनाम.......माँ-बाप और संस्कार होंगे!!"
   

टिप्पणियाँ

  1. एक एक पंक्ति में बहुत से जज्बात है जो खुलकर शब्दों के माध्यम से अच्छादित हो रहे हैं

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