लघु कथा- संस्कार
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लघु कथा - "संस्कार"
लगभग शाम को 4:00 या 4:30 बज रहे थे। मैं बरामदे पर टहल रहा था उसी समय कुछ बच्चे नीचे खेल रहे थे। तभी वहां एक अनजान बच्चा, जो शायद! अपनी मां से बिछड़ गया था। उसके हाव भाव से साफ पता चल रहा था कि वह बहुत परेशान है। देख कर प्रतीत हो रहा था कि वह काफी दूर से रोते बिलखते आ रहा होगा।
तभी जो बच्चे खेल रहे थे, उन्हीं बच्चों में से एक बच्चे की नजर उस रोते बिलखते बच्चे पर पड़ी, और उसने अपने मित्र मंडली के साथ कुछ योजना बनानी शुरू कर दी, फिर सभी अलग अलग होकर पेड़ के पीछे, कोई दीवार के पीछे, कोई कहीं पर, छुप गए और सब के हाथ में छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़े थे।
उन्हीं बच्चों में से एक बच्चे की नजर मुझ पर पड़ी, उसने बड़ी विनम्रता के साथ अपनी आंखें झुका कर वहां से निकलकर आगे जाने लगा। उसके साथी लोगों ने उससे पूछा कि कहां जा रहा है ? तो उसने अपनी आंख से ही मेरी ओर इशारा करके बताया कि वह व्यक्ति हमको देख रहा है। इतने में सभी दोस्त फिर से कुछ योजना बनाने के लिए आपस में मिले और जहां पर मेरी नजर ना पहुंचे ऐसी जगह में, फिर अपनी योजना को क्रियान्वित करने लगे।
मुझे ध्यान था कि जरूर कुछ गड़बड़ होने वाली है।
इतने में वह रोता बिलखता बच्चा मेरे घर से आगे निकल गया। पर मुझे चैन ना था, मैं बस उसी को देखता रहा कि आखिर वे बच्चे इसके साथ क्या करने वाले हैं? थोड़ी देर में मैंने देखा कि एक बच्चे ने चुपके से उसे वह पत्थर का टुकड़ा फेंक के मारा ....जो उसके पैर में जाकर लगा। वह बच्चा जोर से चिल्लाया मां....!
मेरी आंखें भर आई । मैंने सोचा यह क्या हो रहा है? और देखते ही देखते, सभी बच्चों ने बारी बारी से पत्थर फेंककर मारे। वह बच्चा अपनी मां को चिल्लाता हुआ, नीचे सिर करके, आगे बढ़ने लगा, अब मुझसे यह और ना देखा गया। मैं दौड़ कर वहां पहुंचा और उनको बोला कि आप लोग यह क्या कर रहे हैं? वह बच्चा शायद! अपनी मां से बिछड़ गया है, परेशान है, आप लोग उसे और परेशान क्यों कर रहे हो ?
इतने में एक बच्चे का पालक वहां आ पहुंचा और उसने उल्टा मुझे ही फटकार लगाते हुए कहा कि "तुम्हें इससे क्या लेना देना है? यह हमारे बच्चे हैं, वे जो चाहे वह करेंगे।" तब मैंने उन्हें बताया कि उन्होंने किस तरह इस बच्चे को परेशान किया। तो उन्होंने सिर्फ एक वाक्य में कहा- "वह तो जानवर है।" और मैं यह सुन, चुप होकर यह सोचते हुए वापिस आ गया कि "आखिर सुधार की जरूरत कहां थी?"
लेखक,
लक्ष्मीकांत वैष्णव
संस्कार धरोहर होता है। बहुत सुंदर रचना भाई। बधाई हो 💐
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद भाई 🙏🙏💐💐
हटाएंबहुत शिक्षा प्रद रचना है।पालक और बालकों में समझ की कमी है।जिससे संस्कार का अभाव है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏💐💐💐
हटाएंभाई संस्कार हीनता जिस प्रकार से समाज में बढ़ती जा रही है और उसे बढ़ावा ऐसे ही निर्लज्ज पालक दे रहे हैं|
जवाब देंहटाएंएक न एक दिन उनका भी घर इस दावानल का शिकार बनेगा |
चिंतन को मजबूर करती अच्छी लघुकथा
जी धन्यवाद 🙏🙏💐💐💐
हटाएंआज का समाज पश्चिमी सभ्यता को अपना रहा है....... किसी को नीचा दिखाने में अपनी शान समझता है..... परवरिश में कमियां और... संस्कार में कमी को दर्शाता है......
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद 🙏💐💐💐💐💐
हटाएंबहुत बढ़िया ज्ञान वर्धक कहानी, समाज में सुधार की आवश्यकता तो बहुत ही नहीं बल्कि बहुत ज्यादा है॥ हमारे अपने बड़े ही संस्कारी नहीं होंगे तो आनेवाली पीढ़ियों से कैसे उम्मीद की जा सकती है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भाई साहब॥
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏💐💐💐💐
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जवाब देंहटाएं🙏🙏💐💐💐
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