विश्व में राम कथा


                  =विश्व में राम कथा=

राम गाथा हमारी अमुल्य धरोहर है । राम हमारे पूर्वज हमारे ईष्ट हैं । राम अर्थात मर्यादा, जिनका नाम सुनकर व्यक्ति स्वतः मर्यादित हो जाता है । ऐसा प्यारा नाम पूरे विश्व मे धर्म, दर्शन और मर्यादा का आदर्श है । राम गाथा का महत्व हम अपने ही देश में नहीं अपितु विश्व के लगभग सभी देशों में देख सकते हैं । 
                 थाईलैंड में थेरावाद बौद्ध के मानने वाले बहुमत में हैं, फिर भी वहां का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है, जिसे थाई भाषा में 'राम-कियेन' कहते हैंl इसका अर्थ राम-कीर्ति होता है। (सौ. गूगल )
          राम चरित मानस बहुत ही अदभुत पंक्ति लिखी गई है - "होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥"
            राम गाथा हम सबके जीवन मे एक नया पन और मार्गदर्शन करता है । जो हमे अपने काबिलियत पर हमेशा विश्वास रखने और अपने लक्ष्य के प्रति सदैव सजग रहने की बात कहता है । इससे हम अपना वर्तमान ही नहीं वरन् अपना भविष्य और आने वाली पुश्तों को भी प्रेरित करने की शक्ति रखता है । राम गाथा सिर्फ़ राजा रानी और उनके बच्चों या राक्षस,  देवी, देवता या मनगढ़ंत कहानी नहीं है । यह तो  मानव के उस आदर्श स्वरुप का दर्शन है जिसने मर्यादा मे रह कर पूरी दुनिया को यह बताया कि परिस्थिति कितनी भी विपरीत क्यों न हो हम सजगता , धैर्यवान, विनम्रता, सहनशीलता और आत्मविश्वास के द्वारा उस विकट से विकट परिस्थिति से आसानी बाहर आ सकते हैं । प्रतिकुल समय को भी हम अपने अनुकुल बना सकते हैं ।हर ओ असम्भव काम को सम्भव कर सकते हैं,  ऐसी है राम गाथा । पूरे विश्व मे राम गाथा का और उनके चरित्र का अनुसरण करने का कुछ आदर्श बिंदु हैं -

 १. अपने वचन का मान -

 "रघुकुल रित सदा चली आयी, प्राण जाय पर वचन न जायी ।।"
                          माता कैकैइ को दिये वचन की पूर्ति हेतु अपने प्राणों से भी प्रिय पुत्र को वनवास की आदेश न चाहते हुये भी देना । अपने आप में अपने वचनो की मर्यादा को इंगित करता है। 
                 पिता के वचनो का मान रखने के लिए पुत्र द्वारा बहुत ही सहज और विनम्र भाव से वनवास को यह कहकर स्वीकारना कि -
     "मंगल समय सनेह बस , सोच परिहरिअ तात।
  आयसु देइअ हरषि हियँ, कहि पुलके प्रभु गात।।"

 २. भाई प्रेम व अग्रजो के प्रति सम्मान -
                     चारों भाईयो का आपस में प्रेम एक प्रेरणा स्त्रोत है एक आदर्श है जो यह बतलाता है कि हमे एक साथ किस प्रकार रहना चाहिए ।
                     बड़े भाई का छोटो के प्रति स्नेह और सुरक्षा का भाव देखते ही बनता है ।
                     छोटे भाइयों का अपने अग्रजो के प्रति सम्मान आदर्श भाईयो का और समाज सभी के लिए एक अनुकरणीय चरित्र है ।

 ३. विनम्रता, संतुष्टि, धैर्य, मृदुभाषी व सहनशीलता, शान्त भाव व समाधान परक व्यक्तित्व -
                    ज्ञान वान होने के बावजूद अपने विनम्रता का परिचय उन्होने अपने व्यक्तित्व से दिया। परशुराम जी के साथ वार्तालाप उनकी बुद्धिमानी और मृदुभाषी तथा विनम्रता को प्रकट करता है - 
 "नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥"

 ४. विद्या प्राप्ति हेतु समर्पित भाव व गुरु भक्ति -
                           इस अवसर पर पंडित विपिनेश ने भगवान श्रीराम की बाल लीलाओं के दर्शन करवाते हुए कहा कि "प्रात:काल उठी के रघुनाथा, मातु पिता गुरु नावहि माथा।"
                         गुरू सेवा को अपना धर्म मानकर गुरु भक्ति मे लिन हो जाना - 
 "मुनिवर सयन कीन्हीं तब जाई, लागे चरन चापन दोऊ भाई॥"
                    गुरू के प्रति निष्ठा और सम्मान को इस बात से लगाया जा सकता है कि जब सद्गुरु के आगमन का समाचार उन्हे मिलता है - 
 "गुरु आगमनु सुनत रघुनाथा, द्वार जाय पद नावउ माथा॥"
   "सादर अरघ देइ घर आने। सोरह भांति पूजि सनमाने॥"
 "गहे चरन सिय सहित बहोरी। बोले राम कमल कर जोरी ॥"

५. सादगी भरा मर्यादित प्रेम व दिखावे से कोसों दूर -
                     राम सिया की पहली मुलाकात उपवन में हुई वही पर एक दूसरे के होकर रह गए , परंतु उन्होने अपने इस प्रेम दिखावा नहीं आने दिया । वे मर्यादा मे ही रहकर आडम्बर से बच के रहे। यह मर्यादा राजभवन में संयमित आचरण के द्वारा भी दिखलायी देता है - 

 राम के रूप निहारति जानकी कंकन के नग की परछाहीं । 
याती सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं ।।

 ६. पति पत्नी धर्म -
जब श्री राम जी को वनवास मिला तो सीता जी द्वारा अपने पति के साथ वनवास जाने को कहती हैं । राम जी द्वारा अनेक तर्क दिये गये - 

 (" जौं हठ करहु प्रेम बस बामा। तौ तुम्ह दुखु पाउब परिनामा॥
 काननु कठिन भयंकरु भारी। घोर घामु हिम बारि बयारी॥")
                           परन्तु सीता जी ने अपने पति के प्रति कर्त्तव्य और समर्पण के भाव से दिये गये तर्क के सम्मुख प्रभु निरूत्तर हो गये.... 

 ("बन दुख नाथ कहे बहुतेरे। भय बिषाद परिताप घनेरे॥
 प्रभु बियोग लवलेस समाना। सब मिलि होहिं न कृपानिधाना॥")

 ७. आदर्श सम्बन्धों का निर्माण -
                        राम गाथा से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। राम गाथा विश्व में इसलिए भी बहुत ही लोकप्रिय है क्योंकि इसके द्वारा सिर्फ पति-पत्नी के संबंधों का ही वर्णन नहीं अपितु भाई भाई के प्रति, माता पिता पुत्र के प्रति तथा मित्रों के प्रति एवं अतिथि के प्रति आदर्श संबंध निर्माण का भी मार्गदर्शन कराता है।
                         एक ऎसा उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं जिसे आदर्श संबंध निर्माण के लिए प्रेरणा स्रोत है। जिसमें राजा दशरथ एवं राजा जनक दोनों के संवाद हैं । जिन्होंने संबंधी होने पर जिस प्रकार से उदारता और विनम्रता का भाव प्रस्तुत किया वह अलौकिक है - 

 "संबंध राजन रावरें हम बड़े अब सब बिधि भए।
 एहि राज साज समेत सेवक जानिबे बिनु गथ लए॥"


 ८.भक्ति की पराकाष्ठा -
                      लक्ष्मण जी का बड़े भाई की सेवा हेतु वनवास जाने की बात बड़े भाई के प्रति भक्ति भाव और सेवा भाव को स्पष्ट प्रकट करता है-
 "गुर पितु मातु न जानउँ काहू। कहउँ सुभाउ नाथ पतिआहू॥"
                   ऐसी ही भक्ति की पराकाष्ठा केवटराज जी का श्री राम जी के प्रति दिखलाई पड़ता है ।
                    भरत जी की भक्ति अपने बड़े भाई के प्रति ऐसे थी की वे अपना राजसिंहासन छोड़कर अपने बड़े भाई को ढूंढते वह चित्रकूट पहुंच गए और वहां से श्री राम जी को अपने साथ वापस राजमहल लाने की जिद पर अड़ गए परंतु पिता की प्रति श्रद्धा और निष्ठा के कारण उनके वचन को पूर्ण करने के लिए प्रभु कटिबद्ध थे, परंतु भरत जी भी बहुत जिद्दी थे उन्होंने श्री राम जी की चरण पादुका को राजसिंहासन पर बैठा कर प्रजा की सेवा की -

 "प्रभु पद पदुम बंदि दोउ भाई। चले सीस धरि राम रजाई॥"

                      भक्ति की बात हो और माता सबरी जी का वर्णन ना आए ऐसा तो कदापि संभव नहीं है उनकी भक्ति इसी से ही प्रकट होती है कि उनके गुरुदेव द्वारा दिए गए उपदेश से वे श्री राम जी की प्रतीक्षा में दिन रात तत्पर होकर उनके लिए हर दिन ताजे पुष्प से अपने कुटिया को सजाना व मार्ग को सजाना और ताजा ताजा फलों द्वारा प्रभु की सेवा हेतु नित प्रतिदिन प्रतीक्षारत रहना -

 "अधम ते अधम अधम अति नारी। तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी॥
 कह रघुपति सुनु भामिनि बाता। मानउँ एक भगति कर नाता॥"
                     भक्त शिरोमणि हनुमान जी  प्रभु के ध्यान में हमेशा रमे हुए रहते हैं हनुमान जी की भक्ति सर्वज्ञ है श्री राम जी द्वारा कहे गए शब्द हनुमान जी की भक्ति की व्याख्या करता है - 

 "सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी॥"
                      विभिषण की  भक्ति अपने आप में एक आदर्श है जो घोर प्रतिकूल परिस्थिति में रहते हुए भी प्रभु भक्ति में लीन रहे और उनका विश्वास अटल रहा - 

 "सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥
 तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥"

 ९. भगवत प्राप्ति का सुख -
                             राम गाथा द्वारा हर व्यक्ति को एवं समाज को उस अलौकिक सुख से रूबरू कराता है, जो भगवत प्राप्ति के द्वारा सुख मिलता है । ऐसा ही एक किस्सा राम कथा में देखने को मिलता है जिसमें श्री राम जी द्वारा गुरु विश्वामित्र जी के मार्गदर्शन एवं आज्ञा से अहिल्या को प्राप्त हुआ एवं शबरी जी के जूठे बेर खा के शबरी जी का मोक्ष प्राप्त करना, हनुमान जी द्वारा निस्वार्थ सेवा भाव, जटायु जी का श्रीराम के प्रति आस्था और भी ऐसे अनगिनत उदाहरण है जो भगवत प्राप्ति के सुख को प्रकट करता है ।

 १०. भक्ति की शक्ति -
                          राम कथा में भक्ति की शक्ति का कहना ही क्या।  ऐसी भक्ति जो साधारण व्यक्तित्व को भी असाधारण बनाने की शक्ति रखता है।
                          हनुमान जी का सागर पार करना और लंका दहन, मेघनाथ के साथ युद्ध जिसमें ब्रह्मास्त्र का मान रखने के लिए अपनी भक्ति पर विश्वास रखते हुए उसके वार को सहन कर जाना । अपने आप में भक्ति की शक्ति को प्रकट करता है। संजीवनी बूटी लेने गये भक्त शिरोमणि हनुमान जी द्वारा सही बूटी की पहचान ना होने पर बिना समय गवाएं पूरा पहाड़ उठाकर ले आना यह उनकी भक्ति के द्वारा ही संभव हो पाया और इन सब का श्रेय कभी भी उन्होंने अपने ऊपर नहीं लिया वे बस शक्ति स्रोत श्री राम श्री राम श्री राम कहते रहे।

 "सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥"

 ११.अंहकार विनाश का द्वार -
                          अहंकार विनाश का द्वार है यह बात राम कथा में बहुत से जगह पर आसानी से देखने को मिलता है । चाहे किष्किंधा में बाली हो या रावण का अपनी शक्ति पर घमंड या फिर अंगद के सम्मुख रावण का शक्ति प्रदर्शन - 

"कपि बल देखि सकल हियँ हारे। उठा आपु कपि कें परचारे॥
गहत चरन कह बालिकुमारा। मम पद गहें न तोर उबारा॥"

 १२.बुजुर्गो का सम्मान का महत्व -
                             राम कथा में बुजुर्गों के प्रति सम्मान भाव को बहुत ही सहज ढंग से प्रस्तुत किया गया है। जहां जामवंत जी द्वारा बताए गए दिशा निर्देश को श्री राम जी द्वारा स्वीकार कर समुद्र पार करना, चाहे शत्रु की योजना हो या फिर नीति संबंधी रायशुमारी हो सभी चीजों पर श्री राम जी ने जामवंत जी के बातों पर विश्वास रखे  और  उस मार्ग का अनुसरण भी किए। 
                 वहीं माल्यवन्त जी  द्वारा रावण को कई बार समझाने पर उनका अपमान करने का परिणाम सर्वविदित है ।

"परिहरि बयरु देहु बैदेही। भजहु कृपानिधि परम सनेही॥
ताके बचन बान सम लागे, करिआ मुँह करि जाहि अभागे"

 १३.पति धर्म की शक्ति -
                           सीता जी का श्री राम के प्रति आस्था और विश्वास जिसके कारण रावण उन्हे न तो छु सका और न ही विचलित कर सका । माता सीता जी के द्वारा उस अलौकिक शक्ति को सिर्फ एक सूखे तिनके के द्वारा ऐसे साधारण स्वरूप में दिखाकर उसकी असाधारण शक्ति का व्याख्या बहुत ही सुंदर ढंग से किया गया है।

तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही॥
सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥
अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की।।

१४.पत्नी के प्रति कर्त्तव्य -
                            पत्नी के प्रति अपने कर्तव्य के कारण बड़ी से बड़ी दूरियो और समस्याओ का सामना करने की क्षमता रखना और हमारे हिन्दू संस्कारों में एक संस्कार विवाह में दिये गये सात वचनो को पूरा करने की बात का वर्णन श्री राम जी के चरित्र से देखने को मिलता है।

१५. क्षमावान -
                        कितने भी बड़े दुराचारी होने पर भी शरणार्थी के प्रति क्षमा और शरण देने को तत्पर तथा क्षमाशिल व्यक्ति के बारे में सीख भी हमे प्रभु के चरित्र मे आसानी से देखने को मिलता है।

१६. आदर्श व्यक्तित्व -
                           अपने राज्य मे सभी सुखी रहे इसका पुरा ध्यान , स्वयं की खुशी से पहले दूसरों की खुशी को महत्व देना, हमेशा धर्म का अनुसरण , राष्ट्र के प्रति सदैव समर्पित रहना,  एक आदर्श और मर्यादित व्यक्तित्व हमे प्रभु गाथा में देखने को मिलता है ।

 १७. अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठा के साथ कठोर परिश्रम करने  को तैयार रहना -
                            राम गाथा में हम चाहे प्रभु के चरित्र को देखे , चाहे  लक्ष्मण जी , हनुमान जी, माता शबरी , सुग्रीव या अंगद या और भी ऐसे बहुत से चरित्र हैं जो अपने लक्ष्य के प्रति हमेशा कठोर परिश्रम करने को तत्पर रहने की शिक्षा देते हैं - 

          “राम काज कीन्हे बिनु मोहि कहाँ बिश्राम”

 उपसंहार -
                     राम गाथा अपने आप में एक आदर्श कथा जो विश्व के हर एक प्राणी के जीवन में अतिमहत्वपूर्ण स्थान रखता है । जो व्यक्ति को समाज विपरीत परिस्थितियों में भी शान्ति और मर्यादित ढंग से विनम्रता के साथ अपने विवेक से उस परिस्थिति को अपने अनुकुल बनाने और सफ़लता प्राप्त करने का मार्ग दर्शन करता है । राम गाथा किसी व्यक्ति विशेष या धर्म विशेष या राष्ट्र विशेष की बात नहीं है । यह तो एक आदर्श जीवन शैली का एक हिस्सा है।

  "रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥

संदर्भ ग्रंथ -

क. गो. तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस

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